क्या कोई नया सपना पल रहा है धोनी की आंखों में?

मोहाली वनडे में भारतीय टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी कुछ बदले बदले नजर आए


उन्होंने अपने बैटिंग ऑर्डर में बदलाव किया. धोनी नंबर चार पर बल्लेबाजी करने के लिए आए. टीम इंडिया के स्कोरकार्ड और इस मैच को रिकॉर्ड बुक में विराट कोहली के शानदार शतक के लिए याद किया जाएगा लेकिन इस जीत में धोनी का रोल बहुत अहम था. उनके ‘रोल’ से कहीं ज्यादा अहम वो ‘गोल’ था जो उनकी बल्लेबाजी में दिखाई दिया. वो गोल बहुत साफ था. वो अपने आलोचकों को ये बताना चाहते थे कि अब भी किसी भी सूरत में वो टीम इंडिया पर बोझ नहीं हैं. धोनी ने 80 रनों की अपनी पारी में कई रिकॉर्ड्स भी बनाए लेकिन अगर कुछ सबसे बड़ा बनाया तो एक सपने को देखने का आधार.


एक दूर का सपना हो सकता है करीब

अभी बहुत वक्त बाकी है. क्रिकेट का तार्किक पक्ष ये कहता है कि कोई भी खिलाड़ी इतनी दूर की नहीं सोचता. लेकिन यही तर्क ये भी बताता है कि खिलाड़ी हमेशा ‘प्रॉसेस’ पर काम करते हैं. यानि अपने लिए छोटे छोटे लक्ष्य बनाते हैं और उन लक्ष्यों को पूरा करते हैं. फिलहाल महेंद्र सिंह धोनी का अगल लक्ष्य है चैंपियंस ट्रॉफी. चैंपियंस ट्रॉफी में अब एक साल से भी कम का वक्त बचा है. अगले साल जून में इंग्लैंड में चैंपियंस ट्रॉफी खेली जानी है. तकरीबन 8 महीने का वक्त बाकी है. इन आठ महीनों में भारतीय टीम को 5 वनडे मैच और खेलने हैं. दो मैच इस सीरीज के और तीन मैच इंग्लैंड के खिलाफ अगली वनडे सीरीज में. इन 5 मैचों पर बहुत कुछ निर्भर करता है. अगर धोनी इन पांच मैचों में नंबर चार पर बल्लेबाजी करने में सहज रहते हैं. टीम के लिए ‘कॉन्ट्रीब्यूट’ करते हैं तो निश्चित तौर पर उन्हें ‘उस’ सपने को देखने का हक हैं जिसका जिक्र हम कर रहे हैं. ये सपना है देश के लिए एक और वर्ल्ड कप खेलने का. ये मंजिल अभी निश्चित तौर पर दूर है लेकिन अगर धोनी अपने बल्ले और अपने शरीर के साथ इस मंजिल तक पहुंचने का माद्दा रखते हैं तो उन्हें भला कौन रोकेगा और क्यों रोकेगा?

आगे बढ़ने से पहले लगे हाथ ये भी बात कर लेते हैं कि आखिर धोनी को लेकर ये सवाल क्यों उठने लगे थे? दरअसल सच ये है कि पिछले करीब एक साल से धोनी का बल्ला खामोश था. ऐसे में ये सवाल उठ रहे थे कि अगर धोनी के बल्ले से रन नहीं निकल रहे हैं तो क्या सिर्फ कप्तान होने के नाते उनकी जगह टीम में बनती है. बात तार्किक भी थी. अगर धोनी को टीम का कप्तान बने रहना था तो उनका बल्ले से ‘फॉर्म’ में रहना भी जरूरी था. जबकि आंकड़े इसके उलट थे. पिछले साल अक्टूबर में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ उनकी नॉट आउट 92 रनों की पारी को छोड़ दिया जाए तो पिछले साल भर में उन्होंने एक हाफ सेंचुरी तक नहीं लगाई थी, उनका सर्वश्रेष्ठ स्कोर 47 रन था.
क्या खास थी मोहाली की पारी में?


ऐसे वक्त में धोनी की मोहाली की पारी पर चर्चा होनी चाहिए. मोहाली की पारी के बाद धोनी ने साफ साफ कहाकि नंबर चार का ‘ऑर्डर’ उनके लिए आइडियल है. क्योंकि यहां उन्हें खुद को ‘एक्सप्रेस’ करने का मौका मिलता है. यानि वो बल्लेबाजी को अपने हिसाब से ढाल सकते हैं. निचले क्रम पर बल्लेबाजी करने में धोनी लगातार असहज होते जा रहे थे. उन्हें क्रीज पर समय बिताने का मौका ही नहीं मिल रहा था. आते ही बड़े शॉट्स खेलने का दबाव उन पर रहता था. जिसके चलते वो आउट हो जा रहे थे. जबकि नंबर चार पर उनके लिए ये मौका होगा कि वो अपनी बल्लेबाजी की रफ्तार खुद से ‘सेट’ करें. जैसा उन्होंने मोहाली में किया भी. मोहाली में रोहित शर्मा के आउट होने के बाद जब वो बल्लेबाजी करने आए तो न्यूजीलैंड के गेंदबाजों ने ‘शॉर्ट बॉल’ से उनका स्वागत किया. उन्हें लगातार ‘शॉर्ट बॉल’ से परेशान करने की कोशिश की गई, लेकिन धोनी ने इस दवाब को खुद पर हावी नहीं होने दिया. उन्होंने पहले क्रीज पर वक्त  बिताया और फिर जबरदस्त शॉट्स लगाए. बल्कि ‘शॉर्ट बॉल’ के खिलाफ उनके रन बनाने का स्ट्राइक रेट 100 से भी ज्यादा का था. उनकी बल्लेबाजी के दौरान कॉमेटेटर लगातार इस बात का जिक्र कर रहे थे कि उनकी बल्लेबाजी देखकर लग ही नहीं रहा है कि उन्हें ‘शॉर्ट बॉल’ से किसी तरह की परेशानी होती है. इसके अलावा धोनी ने मोहाली में जो भी बड़े शॉट्स लगाए वो बिल्कुल ‘क्लीन हिट’ थे.


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